Vat Savitri Vrat भारत में विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक पवित्र हिंदू त्योहार है, जो उनके पति के प्रति उनके प्रेम, भक्ति और निष्ठा को प्रदर्शित करता है। यह शुभ अवसर बहुत महत्व रखता है और देश के विभिन्न क्षेत्रों में बड़े जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है।आज इस लेख में हम Vat Savitri Vrat Katha Puja Vidhi के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। जिससे की आपको Vat Savitri Vrat की Puja Vidhi में कोई तकलीफ न हो।
वैट सावत्री शुभ मुहूर्त 2023/ Vat Savitri Vrat Subh Muhart 2023
- वट सावित्री व्रत अमावस्या शुक्रवार, 19 मई 2023
- अमावस्या तिथि प्रारंभ – मई 18 गुरुवार, 2023 को 09:42 अपराह्न
- अमावस्या तिथि समाप्त – 19 मई शुक्रवार, 2023 को रात्रि 09:22 बजे
- वट सावित्री व्रत पारण, शनिवार, 20 मई 2023
वैट सावत्री शुभ मुहूर्त 2024/ Vat Savitri Vrat Subh Muhart 2024
- वट सावित्री व्रत अमावस्या गुरुवार, 6 June 2024
- अमावस्या तिथि प्रारंभ – 5 जून , 2024 को 19:55 अपराह्न
- अमावस्या तिथि समाप्त – 6 जून, 2023 को 18:05 बजे
- वट सावित्री व्रत पारण –
Vat Savitri Vrat का अर्थ और महत्व
वट सावित्री दो शब्दों के मेल से बना है: “वट” बरगद के पेड़ को संदर्भित करता है, और “सावित्री” एक पौराणिक महिला का नाम है जो अपने पति की भलाई के लिए असाधारण समर्पण के लिए जानी जाती है। यह त्योहार विवाहित महिलाओं की शक्ति और दृढ़ संकल्प और उनकी वैवाहिक प्रतिज्ञाओं के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
Vat Savitri Vrat प्रेम, भक्ति और निष्ठा का उत्सव
Vat Savitri Vrat की उत्पत्ति का पता महाभारत नामक एक प्राचीन हिंदू महाकाव्य से लगाया जा सकता है। किंवदंती के अनुसार, राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री ने सत्यवान से विवाह किया, जो एक महान राजकुमार था, जिसकी एक वर्ष के भीतर मृत्यु हो गई थी। इस अशुभ भविष्यवाणी के बावजूद, सावित्री ने अपने पति का साथ छोड़ने से इनकार कर दिया और उसे मौत के चंगुल से बचाने के लिए यात्रा पर निकल पड़ी।
अपनी अटूट भक्ति और बुद्धिमत्ता के माध्यम से, वह मृत्यु के देवता यम को पछाड़ने और अपने पति के जीवन को सुरक्षित करने में सफल रही। प्रेम, निष्ठा और त्याग की यही कहानी वट सावित्री उत्सव के पीछे की प्रेरणा बनी। आज हम सत्यवान और सावित्री की इस कथा को विस्तार से बताएँगे ताकि आप भी सनातन धर्म की म्हणता को जान सके।
वट सावित्री व्रत कथा एवं विधि / Vat Savitri Vrat Katha Puja Vidhi
वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को किया जाता है कुछ स्थानों पर यह व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भी करते हैं। यह व्रत वटवृक्ष (बरगद) की पूजा करके संपन्न होती है । सुहागन महिलाएं वटवृक्ष की विधिवत पूजा कर दांपत्य जीवन और संतान की खुशहाली की कामना करती हैं। इस व्रत से जुड़ी प्रसिद्ध कथा है – सत्यवान और सावित्री की कथा।
व्रत के दिन पूजा करके यह कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
सत्यवान सावित्री की कथा / Vat Savitri Vrat Katha
भद्र देश के राजा थे -अश्वपति। राजा निःसंतान होने से अत्यंत दुखी रहते थे। फिर उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए प्रतिदिन एक लाख मंत्रोचार की आहुति के साथ यज्ञ करने का निश्चय किया। यह यज्ञ उन्होंने लगातार 18 वर्षों तक किया।अंत में सावित्री देवी ने प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया की उन्हें एक रूपवती तेजस्वी कन्या प्राप्त होगी। देवी सावित्री के आशीर्वाद से जन्मी कन्या का नाम सावित्री ही रखा गया।
बड़ी होने पर सावित्री और अधिक सुंदर और रूपवती हो गई। अब राजा सावित्री के लिए योग्य वर न मिलने से दुखी थे। अंत में उन्होंने सावित्री से ही कहा की वह अपने लिए योग्य वर का चयन स्वयं ही कर ले। सावित्री वर की खोज में तपोवन में चली गई वहां उसकी भेंट सत्यवान से हुई। सत्यवान राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे। सत्यवान अपने माता पिता के साथ जंगल में ही कुटिया बनाकर रहते थे क्योंकि उनका राज्य छिन गया था।
सावित्री ने सत्यवान को पति के रूप में स्वीकार कर लिया। इस घटना का पता जब देव ऋषि नारद को चला तब उन्होंने राजा अश्वपति को सत्यवान के अल्पायु होने के बारे में बताया और कहा कि उसके जीवन का केवल 1 वर्ष ही बचा है। राजा अश्वपति ने अपनी पुत्री सावित्री को समझाया कि वह किसी और को पति के रूप में स्वीकार करें।
तब सावित्री ने कहा की एक आर्य कन्या एक ही बार किसी को पति के रूप में स्वीकार करती है और मैंने सत्यवान को पति रूप में स्वीकार कर लिया है अब मैं अपना पत्नी धर्म नहीं छोडुंगी। माता पिता के बहुत समझाने पर भी जब सावित्री नहीं मानी तो उसकी इच्छा के आगे राजा को झुकना पड़ा। सत्यवान और सावित्री का विवाह हो गया।
विवाह के पश्चात सावित्री भी राजसी श्रृंगार और महल का सुख त्याग कर साधारण स्त्री की भांति वन में सास ससुर और पति के साथ रहने लगी। सास ससुर की सेवा करने लगी।जैसे-जैसे सत्यवान की मृत्यु का समय नजदीक आने लगा सावित्री और अधीर होने लगी।
देव ऋषि नारद में सावित्री को मृत्यु का दिन बता दिया था उससे 3 दिन पहले ही सावित्री ने उपवास प्रारंभ कर दिया। देव ऋषि नारद के बताए अनुसार पितरों का पूजन और श्राद्ध भी किया।
प्रतिदिन की तरह सत्यवान आज भी वन में लकड़ियां काटने जा रहा था सावित्री भी उसके साथ चली गई। आज ही सत्यवान के जीवन का अंतिम दिन था। सत्यवान लकड़ियां काटने पेड़ पर चढ़ गया परंतु सिर दर्द और चक्कर आने की वजह से नीचे उतर गया और नीचे उतर कर सावित्री की गोद में सर रखकर सो गया।
तभी वहां यमराज आते दिखाई दिए जो सत्यवान के प्राण लेने आए थे। वे सत्यवान के प्राण लेकर जा रहे थे सावित्री भी उनके पीछे जाने लगी। यमराज ने सावित्री को लौट जाने के लिए कहा तो सावित्री ने यह कह कर मना कर दिया की जहां उसके पति के प्राण होंगे वह भी वहीं रहेगी।
यमराज ने सत्यवान के प्राण के बदले तीन बार मांगने को कहा तो सावित्री ने पहला वर मांगा कि उसके ससुर की आंखों की दृष्टि वापस आ गए। यमराज ने पहला वर दे दिया।
सावित्री में दूसरा वर मांगा कि उसके ससुर राजा द्युमत्सेन का राज्य जो छीन लिया गया है वो उन्हें वापस मिल जाए। यमराज ने दूसरा वर भी दे दिया।
फिर सावित्री ने तीसरा वर मांगा कि वह सौ पुत्रों की माता बने और सौभाग्यवती हो। यमराज ने शीघ्रता में तथास्तु कह दिया और सावित्री को वापस लौटने को कहा। तब फिर सावित्री ने कहा की मैं एक पतिव्रता स्त्री हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का और सौभाग्यवती होने का वरदान दिया है।तब मजबूर होकर यमराज को सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े।
सावित्री उसी वटवृक्ष के पास आई जहां सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था। सत्यवान जीवित हो गए, उसके माता-पिता की दृष्टि वापस आ गई और उनका खोया हुआ राज्य भी मिल गया। इस प्रकार सत्यवान और सावित्री ने चिरकाल तक राज्य किया। इसलिए सुहागन महिलाएं अपने पितरों और सास ससुर का आशीर्वाद लेकर विधिवत वट सावित्री का व्रत और पूजन करें। जिससे उनका वैवाहिक जीवन सुखमय और संतान भी सुखी हो।
वटवृक्ष (बरगद) का धार्मिक महत्व
सनातन धर्म में बरगद का पेड़ हमेशा से पूजनीय माना गया है। बरगद का पेड़ लंबे समय तक जीवित रहने वाला (दीर्घजीवी) वृक्ष है। इसलिए इसे अक्षय वृक्ष भी कहते हैं। मान्यता अनुसार वट वृक्ष में त्रिमूर्तियों का वास है, इसकी छाल में विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में भगवान शिव का वास माना गया है। तथा पेड़ की जो शाखाएं नीचे की ओर लटकी रहती है उन्हें देवी सावित्री का प्रतीक माना जाता है। संतान प्राप्ति के लिए भी इसकी पूजा अचूक मानी जाती है।
रस्में और रीति-रिवाज Vat Savitri Vrat
ज्येष्ठ माह की अमावस्या (अमावस्या) के दिन वट सावित्री मनाई जाती है, जो आमतौर पर मई या जून में आती है। महिलाएं जल्दी उठती हैं और पारंपरिक पोशाक में खुद को सजने से पहले पवित्र स्नान करती हैं। वे एक बरगद के पेड़ या एक पवित्र पौधे के पास इकट्ठा होते हैं, जो सावित्री की दिव्य उपस्थिति का प्रतीक है, और प्रार्थना और अनुष्ठान करते हैं। विवाहित महिलाएं अपने पति के लंबे और समृद्ध जीवन के लिए आशीर्वाद मांगते हुए पेड़ के चारों ओर पवित्र धागे बांधती हैं। वे पूरे दिन कठोर उपवास भी करते हैं, भोजन और पानी से परहेज करते हैं जब तक कि वे चंद्रोदय के बाद शाम को इसे नहीं तोड़ देते।
पालन और उत्सव Vat Savitri Vrat
Vat Savitri Vrat का उत्सव भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग है। कुछ क्षेत्रों में, महिलाएं सावित्री और सत्यवान को समर्पित मंदिरों में जाती हैं, प्रार्थना करती हैं और उनका आशीर्वाद मांगती हैं। अन्य लोग सामुदायिक समारोहों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जहाँ विभिन्न प्रदर्शनों और कहानी सुनाने के सत्रों के माध्यम से त्योहार के महत्व पर प्रकाश डाला जाता है। त्योहार विवाहित महिलाओं के बीच एकता की भावना को बढ़ावा देता है क्योंकि वे विवाह की संस्था का सम्मान करने और अपने पति के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करने के लिए एक साथ आती हैं।
वट सावित्री व्रत Vat Savitri Vrat
Vat Savitri Vrat , या उपवास का व्रत, त्योहार का एक अभिन्न अंग है। महिलाएं सूर्योदय से चंद्रोदय तक कठोर उपवास रखती हैं, इस अवधि के दौरान किसी भी भोजन या पानी का सेवन नहीं करती हैं। ऐसा माना जाता है कि यह व्रत उनके पति के लिए सौभाग्य, वैवाहिक आनंद और दीर्घायु लाता है। इसे एक पवित्र दायित्व माना जाता है और पत्नी के अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम और प्रतिबद्धता का प्रदर्शन होता है।
प्रतीकवाद और विश्वास Vat Savitri Vrat
वट सावित्री प्रतीकात्मकता और गहरी आस्थाओं से भरी हुई है। बरगद का पेड़, अपनी लंबी उम्र और ताकत के लिए जाना जाता है, वैवाहिक बंधन की स्थिरता और धीरज का प्रतिनिधित्व करता है। माना जाता है कि पेड़ के चारों ओर पवित्र धागे बांधने से सावित्री का आशीर्वाद प्राप्त होता है और पति की भलाई और दीर्घायु सुनिश्चित होती है। विवाहित महिलाओं द्वारा किया गया व्रत उनके बलिदान और समर्पण का प्रतीक है, जो उनके विवाह की पवित्रता को बनाए रखने की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
क्षेत्रीय विविधताएँ Vat Savitri Vrat
जबकि वट सावित्री का मूल सार समान है, त्योहार मनाने के तरीके में क्षेत्रीय विविधताएं हैं। भारत के कुछ हिस्सों में, विवाहित महिलाएँ घर पर व्यक्तिगत रूप से व्रत रखती हैं और पूजा की रस्में निभाती हैं। अन्य क्षेत्रों में, महिलाएं समूहों में एक साथ आती हैं, मंदिरों में जाती हैं, और सामूहिक प्रार्थनाओं और उत्सवों में शामिल होती हैं। ये क्षेत्रीय विविधताएं वट सावित्री के समग्र उत्सव में विविधता और समृद्धि जोड़ती हैं।
आधुनिक प्रासंगिकता Vat Savitri Vrat
आधुनिक युग में भी विवाहित महिलाओं के जीवन में वट सावित्री का महत्व बना हुआ है। यह वैवाहिक रिश्ते में प्यार, वफादारी और प्रतिबद्धता के महत्व की याद दिलाता है। यह त्योहार महिलाओं को अपने पति के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करने और उनके जीवन में रोमांस और सद्भाव को फिर से जगाने का अवसर प्रदान करता है। यह एक सांस्कृतिक लंगर के रूप में भी कार्य करता है, पारंपरिक मूल्यों को संरक्षित करता है और पारिवारिक बंधनों को मजबूत करता है।
स्वास्थ्य फायदे Vat Savitri Vrat
अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व से परे, Vat Savitri Vrat कुछ स्वास्थ्य लाभों से जुड़ा हुआ है। एक दिन के उपवास का पालन विषहरण को बढ़ावा दे सकता है और पाचन में सुधार कर सकता है। यह मानसिक अनुशासन और आत्म-नियंत्रण को बढ़ावा देते हुए शरीर को आराम और कायाकल्प करने की अनुमति देता है। हालांकि, यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह व्यक्तिगत स्वास्थ्य स्थितियों के अनुरूप है, कोई भी उपवास आहार लेने से पहले एक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श करना महत्वपूर्ण है।
वट सावित्री पूजा विधि व्रत विधि / Vat Savitri Vrat Puja Vidhi
- व्रत के दिन सुहागन स्त्री सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
- स्त्री सोलह सिंगार करें।
- यदि संभव हो तो वट वृक्ष के नीचे सत्यवान सावित्री और यमराज की मूर्ति स्थापित करें अन्यथा मानसिक रूप से इनका ध्यान करें।
- वृक्ष की जड़ में जल डालें, फल, फूल, धूप, मिठाई आदि से वृक्ष की पूजा करें।
- आप श्रृंगार भी देवी सावित्री को अर्पित कर सकती हैं।
- कच्चा सूत या मौली धागा लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करें और धागाउसके तने में लपेटते जाएं परिक्रमा के साथ अपने सौभाग्य और संतान के स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना करें।
- भीगा चना लेकर सत्यवान सावित्री की कथा सुने।
- कथा समाप्त होने पर यह भीगा चना, कुछ धन और वस्त्र अपनी सास को भेंट कर उनसे आशीर्वाद ले।
- वट वृक्ष की कोपल(छाल) खाकर उपवास समाप्त कर सकते हैं।
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निष्कर्ष
Vat Savitri Vrat एक अत्यंत प्रिय त्योहार है जो भारत में विवाहित महिलाओं की भक्ति और प्रतिबद्धता का उदाहरण है। पौराणिक कथाओं में निहित, यह वैवाहिक संबंधों के भीतर प्रेम और त्याग की शक्ति की याद दिलाता है। जब महिलाएं बरगद के पेड़ के चारों ओर इकट्ठा होती हैं, अनुष्ठान करती हैं और व्रत रखती हैं, तो वे निष्ठा, एकता और लचीलेपन के मूल्यों को मजबूत करती हैं। वट सावित्री पति और पत्नी के बीच अटूट बंधन के प्रतीक के रूप में एक पोषित परंपरा के रूप में फलती-फूलती रही है।
वट सावित्री व्रत की कथा क्या है?
वट सावित्री व्रत की कथा सावित्री की भक्ति और दृढ़ संकल्प के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसने अपने पति सत्यवान को मौत के चंगुल से बचाया था। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को रखने से विवाहित जोड़ों को समान आशीर्वाद मिल सकता है।
वट सावित्री व्रत की पूजा कैसे की जाती है?
वट सावित्री व्रत पूजा में विवाहित महिलाएं बरगद के पेड़ के चारों ओर पवित्र धागे बांधती हैं, सावित्री और सत्यवान की पूजा करती हैं, अनुष्ठान करती हैं और एक दिन का उपवास रखती हैं। पूजा पूरी श्रद्धा और श्रद्धा से की जाती है।
वट सावित्री के उपवास में क्या क्या लगता है?
वट सावित्री व्रत व्रत के दौरान महिलाएं आमतौर पर भोजन और पानी से परहेज करती हैं। वे पारंपरिक पोशाक भी पहनती हैं, सिंदूर (सिंदूर) और हल्दी (हल्दी) लगाती हैं, और खुद को गहनों और पवित्र धागे (मंगलसूत्र) से सजाती हैं।
वट सावित्री में किसकी पूजा की जाती है?
वट सावित्री व्रत के दौरान पूजा मुख्य रूप से देवी सावित्री को समर्पित है, जो उनकी अटूट भक्ति और उनके पति भगवान सत्यवान के लिए पूजनीय हैं। दीर्घायु और स्थिरता का प्रतिनिधित्व करने वाले बरगद के पेड़ की भी पूजा की जाती है।
वट सावित्री व्रत में क्या खाना चाहिए?
वट सावित्री व्रत व्रत के दौरान, महिलाएं आमतौर पर पूरे दिन भोजन और पानी का सेवन नहीं करती हैं। हालांकि, अगर कोई खाने का विकल्प चुनता है, तो वे हल्के और सात्विक (शुद्ध) खाद्य पदार्थ जैसे फल, सूखे मेवे और दूध ले सकते हैं।
वट सावित्री व्रत में क्या नहीं करना चाहिए?
वट सावित्री व्रत के दौरान मांसाहारी भोजन, शराब, तंबाकू और अन्य उत्तेजक पदार्थों के सेवन से बचने की सलाह दी जाती है। इसके अतिरिक्त, नकारात्मक विचारों, गपशप और ऐसी किसी भी गतिविधि से बचना महत्वपूर्ण है जो व्रत और पूजा की पवित्रता को बाधित कर सकती है।