Shahi Snan Mahakumbh 2025 का रहस्यमयी और पवित्र शाही स्नान 13 जनवरी से शुरू हो रहा है। जानें इन स्नानों की तिथियां, ज्योतिषीय संयोग और आध्यात्मिक महत्व। इस कुंभ में मोक्ष प्राप्ति का अवसर न गंवाएं!
13 जनवरी 2025 से शुरू होने जा रहा है दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला — महाकुंभ, एक ऐसा आयोजन जिसे सिर्फ देखने भर से आत्मा तक पवित्र हो जाती है। यह मेला हर बार कुछ अनकहे रहस्यों और अनजानी कहानियों के साथ आता है। मकर संक्रांति के दिन से शुरू होने वाला यह महापर्व फरवरी में महाशिवरात्रि के साथ अपने भव्य समापन पर पहुंचेगा। पर क्या आप जानते हैं कि यह मेला केवल साधारण मेला नहीं, बल्कि त्याग, तपस्या और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम है? आइए, इस महाकुंभ के कुछ ऐसे पहलुओं को जानें, जो आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे।
Shahi Snan Mahakumbh शाही स्नान का रहस्य और महत्व
महाकुंभ के दौरान शाही स्नान सबसे महत्वपूर्ण और रहस्यमयी प्रक्रिया है। कहते हैं कि महाकुंभ शाही स्नान में भाग लेने वाले साधु-संत देवताओं जैसे प्रतिष्ठित होते हैं। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस पावन स्नान का हिस्सा बनता है, वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है और उसके कई जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि शाही स्नान केवल कुंभ मेले में ही क्यों होता है? इसकी कहानी में छिपा है सनातन संस्कृति का गूढ़ रहस्य। यह स्नान साधु-संतों की शाही सवारी और उनके द्वारा नदी में प्रथम स्नान से प्रारंभ होता है। इनके स्नान के बाद ही आम श्रद्धालु स्नान कर सकते हैं।
2025 के 6 प्रमुख महाकुंभ शाही स्नान
इस वर्ष कुंभ के दौरान 6 शाही स्नान की तिथियां हैं, और हर स्नान एक खास ज्योतिषीय संयोग में होगा, जो इसे और भी शुभ और महत्वपूर्ण बनाता है:
13 जनवरी 2025 — पौष पूर्णिमा
14 जनवरी 2025 — मकर संक्रांति (मंगलवार)
29 जनवरी 2025 — मौनी अमावस्या (बुधवार)
3 फरवरी 2025 — वसंत पंचमी (सोमवार)
12 फरवरी 2025 — माघी पूर्णिमा (बुधवार)
26 फरवरी 2025 — महाशिवरात्रि (बुधवार)
क्यों है महाकुंभ शाही स्नान इतना विशेष?
आपने शायद यह सुना होगा कि महाकुंभ शाही स्नान करने वाला व्यक्ति अमरत्व का वरदान प्राप्त करता है। इसके पीछे की कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी है, जब अमृत कलश की रक्षा के लिए देवताओं और असुरों में युद्ध हुआ था। कहते हैं कि इसी संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें चार पवित्र नदियों में गिरीं — गंगा (हरिद्वार), गोदावरी (नासिक), क्षिप्रा (उज्जैन), और संगम (प्रयागराज)। महाकुंभ शाही स्नान इन्हीं अमृत बूंदों का प्रतीक है। हर कुंभ में यह स्नान एक नए आध्यात्मिक युग का आरंभ करता है।
रवि योग में पहला महाकुंभ शाही स्नान
13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा के दिन पहले महाकुंभ शाही स्नान का आयोजन होगा, और इस दिन का महत्व इसलिए और बढ़ जाता है क्योंकि यह रवि योग में पड़ रहा है। ज्योतिषीय दृष्टि से, यह योग किसी भी कार्य को अत्यंत शुभ और फलदायी बना देता है।
रहस्य और रोमांच महाकुंभ शाही स्नान
क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ शाही स्नान की तैयारी महीनों पहले से शुरू हो जाती है, और इसमें भाग लेने वाले नागा साधु किस तरह तपस्या करते हैं? इन साधुओं का जीवन रहस्य और रोमांच से भरा होता है। वे कड़कड़ाती सर्दी में भी बिना वस्त्र के स्नान करते हैं और अपने अनुयायियों को भी जीवन में संयम और साधना का मार्ग दिखाते हैं।
अंतिम महाकुंभ शाही स्नान और महाशिवरात्रि का महत्व
महाशिवरात्रि के दिन कुंभ का अंतिम शाही स्नान होता है। यह दिन शिव और शक्ति के मिलन का पर्व है। कहते हैं कि इस दिन किया गया स्नान मनुष्य के भीतर सोई हुई ऊर्जा को जागृत कर देता है। महाकुंभ का यह समापन स्नान भक्तों को असीम ऊर्जा और आंतरिक शांति का अनुभव कराता है।
तो इस बार, जब आप कुंभ मेले की अद्भुत दिव्यता को अनुभव करने जाएं, तो इन अनसुने रहस्यों और गूढ़ महत्वों को अपनी स्मृतियों में जरूर समेटें। कौन जानता है, शायद आपकी अगली यात्रा आपकी आत्मा को मुक्ति का मार्ग दिखा दे।
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