मृत्यु के बाद शिशुओं को जलाया क्यों नहीं जाता Why do Hindus bury child after Death

मृत्यु एक ऐसा सत्य है जिसे टाला नहीं जा सकता। यह जीवन का अंतिम पड़ाव है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा कैसी होती है? हिंदू धर्म (Hindu Mythology) में मृत्यु के बाद किए जाने वाले संस्कारों का विशेष महत्व है। आमतौर पर हिंदू धर्म में शव का दाह संस्कार (Bachchon Ka Dah Sanskar) किया जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि शिशु और संन्यासी को जलाने की बजाय दफनाया क्यों जाता है? (Why Do Hindus Bury Child After Death) यह एक ऐसा रहस्य है, जिसे गरुड़ पुराण (Garud Puran) और अन्य हिंदू ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है।

मृत्यु के बाद शिशुओं को जलाया क्यों नहीं जाता? || अंतिम संस्कार के नियम || गरुड़ पुराण

आइए, इस गूढ़ रहस्य को समझते हैं और जानते हैं कि हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा कैसी होती है?

हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार का महत्व

हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद शव को अग्नि को समर्पित करने की परंपरा है, जिसे हम दाह संस्कार (Bachchon Ki Antim Kriya) कहते हैं। यह प्रक्रिया केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

गरुड़ पुराण (Garud Puran) के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा एक विशेष यात्रा पर निकलती है, जिसे प्रेत यात्रा कहा जाता है। यह यात्रा कर्मों के आधार पर स्वर्ग, नरक, या पुनर्जन्म की ओर अग्रसर होती है। यदि अंतिम संस्कार (Child Last Rites in Hindus) विधिपूर्वक किया जाए, तो आत्मा को गति मिलती है और वह प्रेत योनि में नहीं फंसती।

Why do Hindus bury child after Death
Why do Hindus bury child after Death

 

लेकिन शिशु और संन्यासी को जलाया नहीं जाता, बल्कि उन्हें दफनाया जाता है। आखिर क्यों? आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।

शिशुओं को क्यों दफनाया जाता है? (Why Are Children Buried After Death in Hindu Mythology)

गरुड़ पुराण (Garud Puran) और अन्य शास्त्रों के अनुसार, यदि किसी शिशु की मृत्यु गर्भ में ही हो जाए या उसकी उम्र दो वर्ष से कम हो, तो उसे जलाने की अनुमति नहीं होती। इसका मुख्य कारण यह माना जाता है कि इन नन्हे शिशुओं की आत्मा को शरीर से कोई लगाव नहीं होता (Navajat Shishuon Ko Jalaya Kyon Nahi Jaata) और न ही उनके जीवन में कोई ऐसा कर्म हुआ होता है, जो उन्हें पृथ्वी से बांध सके।

शास्त्रों में शिशु के दफनाने का कारण:

  1. कर्मों का अभाव: हिंदू धर्म के अनुसार, किसी भी आत्मा को जन्म और मृत्यु के चक्र में उसके कर्मों के आधार पर बांधा जाता है। लेकिन छोटे शिशु, विशेष रूप से दो वर्ष से कम उम्र के बच्चे, अपने पिछले जन्म के कर्मों के कारण जन्म लेते हैं, लेकिन उन्होंने इस जन्म में कोई नया कर्म नहीं किया होता। इसलिए उनकी आत्मा को अग्नि संस्कार की आवश्यकता नहीं होती।
  2. पुनर्जन्म की प्रक्रिया: ऐसा माना जाता है कि नवजात और छोटे बच्चों की आत्मा जल्दी ही पुनर्जन्म ग्रहण कर लेती है। इसलिए उनकी देह को जलाने के बजाय भूमि को समर्पित कर दिया जाता है।
  3. शरीर से आत्मा का अलगाव: चूंकि शिशु को अपने शरीर से लगाव नहीं होता, इसलिए बच्चों का अंतिम संस्कार (Bachon Ka Antim Sanskar) अग्नि संस्कार से नहीं किया जाता।

क्या यह परंपरा आज भी प्रचलित है?

हाँ, आज भी कई हिंदू समुदायों में बच्चों का अंत्येष्टि संस्कार (Bachchon Ka Antyeshti Sanskar) भूमि समाधि देकर किया जाता है, विशेष रूप से ग्रामीण और पारंपरिक परिवारों में।

साधु-संतों को क्यों दफनाया जाता है?

सन्यासियों और संतों को भी अग्नि संस्कार नहीं दिया जाता, बल्कि उन्हें भूमि समाधि दी जाती है। इसका मुख्य कारण यह है कि संन्यासी सांसारिक बंधनों से मुक्त हो चुके होते हैं

संन्यासियों के दफनाने के कारण:

  1. अहंकार और मोह का अंत: जब कोई व्यक्ति संन्यास धारण करता है, तो वह अपने शरीर को भी त्याग देता है। इस स्थिति में, उसकी आत्मा पहले ही संसार के बंधनों से मुक्त मानी जाती है।
  2. शरीर को पंचतत्व में विलीन करना: हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि मृत शरीर को पंचतत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) में विलीन कर देना चाहिए। चूंकि साधु पहले ही आत्मज्ञान प्राप्त कर चुके होते हैं, इसलिए उन्हें भूमि में समाधि दी जाती है।
  3. पवित्रता का प्रतीक: साधु-संतों को दफनाने के पीछे यह भी मान्यता है कि उनका शरीर अब भी ऊर्जा से भरा होता है और समाधि स्थल से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। यही कारण है कि संतों की समाधियों को मंदिरों की तरह पूजा जाता है।

मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा

गरुड़ पुराण में कहा गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा की एक लंबी यात्रा शुरू होती है। यह यात्रा कर्मों के आधार पर स्वर्ग या नरक तक जाती है। इसी कारण हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यदि सही विधि से संस्कार न किया जाए, तो आत्मा प्रेत योनि में जा सकती है और मुक्ति प्राप्त नहीं कर पाती।

मृत्यु के बाद आत्मा की अवस्थाएँ:

  1. प्रेत योनि: यदि आत्मा को विधिवत संस्कार नहीं मिलता, तो वह प्रेत योनि में भटक सकती है।
  2. स्वर्ग-नरक की यात्रा: अच्छे कर्मों वाली आत्मा स्वर्ग जाती है, जबकि बुरे कर्मों वाली आत्मा को यमलोक में दंड मिलता है।
  3. मोक्ष: केवल साधु-संत, योगी और आत्मज्ञानी लोग मोक्ष प्राप्त करते हैं, जिससे वे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाते हैं।

Types Of Moksha मोक्ष के प्रकार

निष्कर्ष

आज हमने जाना कि हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार से जुड़े रहस्यों का क्या महत्व है और क्यों शिशु तथा संन्यासी की देह अग्नि को समर्पित नहीं की जाती। हिंदू धर्म का हर संस्कार गहरी आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ है और इसकी परंपराएँ वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

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