राजा दशरथ की छुपी पाँचवीं संतान Shanta Devi की रहस्यमयी कहानी

जय श्री राम!
सदियों से हम राजा दशरथ की चार संतानों की कहानी सुनते आ रहे हैं—राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। प्रभु श्रीराम, जो सबसे बड़े पुत्र थे, हमेशा रामायण की कथा के केंद्र में रहे हैं। लेकिन अगर मैं आपसे कहूं कि राजा दशरथ के चार नहीं, बल्कि पाँच संतानें थीं? हां, आपने सही सुना!

श्रीराम से भी बड़ी एक बहन थीं शांता देवी (Shanta Devi), एक राजकुमारी, जिसका ज़िक्र इतिहास के पन्नों में लगभग खो गया है। राजा दशरथ और माता कौशल्या की यह पुत्री, जो उनके परिवार की पहली संतान थी, आज भी बहुत कम लोगों को याद है।

राजा दशरथ की बेटी शांता

कौन थीं श्रीराम की अनसुनी बहन शांता देवी (Shanta Devi)

आखिर कौन थीं यह बहन? उनकी कहानी क्यों छिपाई गई? वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में उनका नाम क्यों नहीं आता? और कैसे उनकी ज़िंदगी ने न केवल अयोध्या बल्कि रामायण की पूरी गाथा की दिशा बदल दी?

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“Shanta Devi की कहानी सिर्फ एक भूली-बिसरी बहन की दास्तान नहीं है। यह त्याग, भक्ति, और नियति की अनोखी गाथा है।
जब राजा दशरथ ने अपनी प्यारी बेटी को अंगदेश के राजा रोमपद को दान कर दिया, तो उन्होंने सोचा भी नहीं था कि यह बलिदान एक भयंकर अकाल का अंत करेगा। लेकिन क्या शांता का अयोध्या से नाता सचमुच हमेशा के लिए टूट गया था? या फिर नियति ने उनकी कहानी को रामायण के दिव्य सूत्रों में बुन दिया था?

क्या आप जानते हैं कि Shanta Devi के पति, ऋषि श्रृंगी, राजा दशरथ के चारों पुत्रों—राम, लक्ष्मण, भरत, और शत्रुघ्न—के जन्म के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण बने? अगर शांता न होतीं, तो शायद रामायण की कहानी भी वैसी नहीं होती, जैसी हम जानते हैं।

आज भी हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्थित प्राचीन मंदिरों में शांता देवी और ऋषि श्रृंगी की पूजा होती है, जहाँ श्रद्धालु यह मानते हैं कि इनकी आराधना से प्रभु राम की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

तो आखिर बंजार घाटी के रहस्यमयी जंगलों में ऐसा क्या घटित हुआ था? प्राचीन मंदिरों में छिपे कौन से राज आज भी भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बने हुए हैं?
हमारी इस वीडियो के अंत तक जुड़े रहिए, क्योंकि हम आपके सामने Shanta Devi की पूरी कहानी उजागर करेंगे—एक ऐसी गाथा जो त्याग, नियति और भूली-बिसरी धरोहर से भरी है। यह कहानी आपको न केवल चौंकाएगी, बल्कि आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि रामायण के इस अनछुए पहलू को आखिर हमने अब तक कैसे अनदेखा कर दिया।”

राजा दशरथ की पांचवी संतान का जिक्र न तो वाल्मीकि रामायण में है और न ही रामचरितमानस में। लेकिन दक्षिण भारत में प्रचलित रामायण कथा में राजा दशरथ की पांचवीं संतान और प्रभु श्रीराम की बड़ी बहन का भी जिक्र किया गया है।

दक्षिण भारत में प्रचलित रामायण कथा के मुताबिक राजा दशरथ की सबसे बड़ी संतान एक पुत्री थीं, जो भगवान राम से भी बड़ी थीं। इनका नाम Shanta Devi था और ये राजा दशरथ और माता कौशल्या की पुत्री थीं।

शांता देवी को अंगदेश के राजा रोमपाद और रानी वर्षिणी ने गोद ले लिया
देवी शांता अंगदेश के राजा रोमपाद और रानी वर्षिणी की पुत्री बन गई

 

शांता देवी के बारे में तीन कथाओं का उल्लेख मिलता है। पहली कथा के अनुसार भगवान श्रीराम की मौसी यानी की कौशल्या की बहन वर्षिणी निःसंतान थीं तथा एक बार अयोध्या में उन्होंने हंसी-हंसी में ही बच्चे की मांग कर दी , की हम निसंतान है और ये बच्ची से हमारा बुहत लगाव है तो ये हमे दे दे हम इसे गोद लेना चाहते है ।

तो माता कौशल्या और राजा दशरथ भी मान गए और वचन दे दिया । रघुकुल का दिया गया वचन निभाने के लिए शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं क्योकि “रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जय पर वचन न जाई”। और इस तरह Shanta Devi अंगदेश के राजा रोमपाद और रानी वर्षिणी की पुत्री बन गई।

shanta devi ka janam

एक कथा ये भी है पौराणिक कथा के अनुसार जब राजा दशरथ की पुत्री Shanta Devi ने जन्म लिया था तब अयोध्या में अकाल पड़ था। 12 वर्षों तक अकाल की स्थिति बनी रही। इसकी वजह से प्रजा को भी काफी कष्ट सहना पड़ रहा था। तब चिंतित राजा दशरथ को सलाह दी गई कि यदि वे शांता को दान कर दें तो अकाल की स्थिति टल सकती है। प्रजा के कल्याण के लिए राजा दशरथ और रानी कौशल्या ने अपनी प्रिय और गुणवान पुत्री Shanta Devi को अंगदेश के राजा रोमपाद और वर्षिणी को दान कर दिया क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी.

वर्षिणी माता कौशल्या की बहन थीं। राजा रोमपाद और वर्षिणी ने Shanta Devi का पालन पोषण बहुत प्रेमपूर्वक किया और इसके बाद शांता को अयोध्या की नहीं बल्कि अंगदेश की राजकुमारी कहा जाने लगा। कहा जाता है कि अयोध्या से जाने के बाद शांता कभी वापस वहां नहीं आयीं। उन्हें राजा रोमपाद और रानी वर्षिणी की पुत्री के रूप में जाना गया. इस कारण आज भी राजा दशरथ की संतानों में सिर्फ 4 पुत्रों की गिनती की जाती है, जिनमें श्रीराम सबसे बड़े कहलाए.

एक कथा के अनुसार कहा जाता है कि एक बार एक ब्राह्मण राजा रोमपद के दरबार में आए और अपने लिए ब्राम्हण ने राजा से मदद मांगी, लेकिन राजा रोमपद काफी व्यस्त रहे और उन्होंने ब्राह्मण की बात नहीं सुनी. ऐसे में वह ब्राह्मण काफी निराश हुआ और वह उस राज्य को छोड़कर चले गए . ब्राह्मण की अनदेखी के चलते देवराज इंद्र अंगदेश राज्य से नाराज हो गए और उनके राज्य में वर्षा नहीं हुई. जिसके चलते पूरे राज्य में सूखा पड़ गया. और प्रजा बहुत परेशान रहने लगी।

Shanta Devi

राजी रोमपद को उनके सलहकारो में सलाह दी के वे ऋषि श्रृंगी के मिले अब वही कुछ यज्ञ अनुष्ठान कर के इंद्रा देव को प्रसन्न कर सकते है, और हमे इस मुसीबत से बहार है।

शृंगी ऋषि रामायण काल के जाने माने बेहद सिद्ध पुरुष थे। ऐसे पर राजा रोमपद श्रृंगा ऋषि के पास पहुंचे। और उन्होंने श्रृंगा ऋषि की मदद से देवराज इंद्र को प्रसन्न किया. उसके बाद पूरे राज्य में बारिश हुई और खेत खलिहान फसलों से भर गए. राजा रोमपद देवता श्रृंगा ऋषि से प्रसन्न हुए और उन्होंने उसके बाद अपनी बेटी Shanta Devi का विवाह भी श्रृंगा ऋषि से कर दिया।

shanta devi ki shadi rishi shringi ke sath

धार्मिक मान्यता के अनुसार इधर, Shanta Devi के बाद राजा दशरथ की कोई संतान नहीं हुई थी. वो एक पुत्र चाहते थे, जो उनके राजवंश को आगे बढ़ाए. जिसके लिए ऋषि वशिष्ठ सलाह देते है की आप श्रृंगी ऋषि से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाए , उन्होंने अपने मंत्री सुमंत के कहने पर ऋषि श्रृंगी को यज्ञ करने के लिए बुलाया. जिसके बाद ऋषि शृंगी ने अपने तप के प्रभाव से पुत्रेष्टि यज्ञ संपन्न कराया था. इसके बाद ही राजा दशरथ को चार पुत्र राम, लक्ष्मण, शत्रुघ्न और भरत की प्राप्ति हुई थी।

कुल्लू से 50 किलोमीटर की दूरी पर आज भी भगवान श्री राम की बड़ी बहन Shanta Devi का मंदिर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला के उपमंडल बंजार में स्थित है. यहां पर माता शांता अपने पति श्रृंगी ऋषि के साथ पूजी जाती है। वहां देवी की प्रतिमा उनके पति शृंगी ऋषि के साथ स्थापित है। दूर दूर से भक्त यहां आकर माता शांता देवी और शृंगी ऋषि की पूजा अर्चना करते हैं. मान्यता है कि यहां शांता देवी की पूजा करने से प्रभु श्रीराम की भी कृपा प्राप्त होती है और सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है.

देवता श्रृंगी ऋषि का मंदिर चेहनी के साथ लगते बागी नामक गांव में स्थित है और यहीं पर ही माता Shanta Devi की पाषाण मूर्ति भी स्थापित है. देवता श्रृंगी ऋषि का रथ जब इलाके की परिक्रमा पर निकलता है तो माता शांता भी चांदी की छड़ी के रूप में उनके साथ निकलती है और अपने भक्तों को सुख शांति का वरदान भी देती हैं. श्रृंगी ऋषि के मंदिर में भगवान राम से जुड़े हुए सभी त्यौहार भी धूमधाम के साथ मनाए जाते हैं और श्रृंगी ऋषि को भगवान श्री राम के गुरु होने का भी सौभाग्य प्राप्त है.

श्रृंगा ऋषि मंदिर की पुजारी जितेंद्र कुमार शर्मा का कहना है कि यहां पर देवता श्रृंगा ऋषि का मंदिर दशकों पुराना है और यह मंदिर बागी गांव में स्थित है. देवता श्रृंगा ऋषि बंजार घाटी के आराध्य देवता है और माता Shanta Devi की भी यहां पर रोजाना पूजा अर्चना की जाती है।

राजा दशरथ की पाँचवी संतान: शांता देवी (Shanta Devi) की कथा

रामायण के नायक भगवान श्रीराम की कथा सभी ने सुनी है, लेकिन एक महत्वपूर्ण पात्र, जो रामायण की परंपरागत कथाओं में गुम हो गई, वह हैं राजा दशरथ और माता कौशल्या की पुत्री Shanta Devi। दक्षिण भारतीय रामायण कथाओं में शांता का उल्लेख मिलता है, जो कि राजा दशरथ की पहली संतान थीं। यह कथा रहस्यमय, रोमांचक और कई महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ी है, जिसे प्रामाणिक तथ्यों के साथ समझा जा सकता है।

आप शांता देवी की पूरी कहानी वीडियो के माध्यम से देख सकते है हमारे यूट्यूब चॅनेल में लिंक निचे दिया गया है

https://youtu.be/7pTffGuhX98

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शांता देवी का जन्म और अकाल की घटना

जब Shanta Devi का जन्म हुआ, तब अयोध्या में एक भीषण अकाल पड़ गया था। इस अकाल ने पूरे राज्य को 12 वर्षों तक अपने शिकंजे में जकड़े रखा। प्रजा को भयंकर कष्ट सहने पड़े और राज्य में अन्न का संकट उत्पन्न हो गया। राजा दशरथ इस विपत्ति से मुक्ति पाने के लिए विभिन्न उपाय करने लगे, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।

क्या थी समस्या? इस अकाल का कारण Shanta Devi का जन्म नहीं था, बल्कि इसे प्रजा और राजा के बीच हुई एक अव्यवस्था के प्रतीक के रूप में देखा गया। प्रजा के कल्याण के लिए राजा दशरथ को सलाह दी गई कि यदि वे अपनी पुत्री शांता को दान कर दें, तो राज्य को इस अकाल से मुक्ति मिल सकती है।

राजा दशरथ का कठिन निर्णय

अपने राज्य और प्रजा के हित के लिए राजा दशरथ और माता कौशल्या ने कठिन निर्णय लिया। उन्होंने अपनी पुत्री Shanta Devi को अंगदेश के राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी (जो माता कौशल्या की बहन थीं) को दान कर दिया। यह निर्णय कठिन था, लेकिन राजधर्म और राज्य के कल्याण के लिए आवश्यक था।

यह घटना हमें क्या सिखाती है? यह हमें बताती है कि शांता सिर्फ एक सामान्य राजकुमारी नहीं थीं, बल्कि उन्होंने अपने जन्म से ही त्याग और बलिदान का उदाहरण प्रस्तुत किया। राज्य की भलाई के लिए उन्हें अपने परिवार से दूर होना पड़ा।

शांता का पालन-पोषण और अंगदेश की राजकुमारी बनना

अंगदेश में शांता का पालन-पोषण बहुत प्रेमपूर्वक हुआ। राजा रोमपद और रानी वर्षिणी ने उन्हें अपनी पुत्री के समान पाला। Shanta Devi अब अयोध्या की नहीं, बल्कि अंगदेश की राजकुमारी कहलाने लगीं। उनका व्यक्तित्व सुंदर और गुणों से भरपूर था। वह एक कुशल, दयालु और धर्मपरायण राजकुमारी बनकर अंगदेश के लोगों की प्रिय हो गईं।

राजा रोमपद और शांता का विशेष संबंध: राजा रोमपद के राज्य में शांता देवी की उपस्थिति ने उन्हें एक विशेष स्थान दिलाया। राजा रोमपद के शासनकाल के दौरान, एक बार राज्य में सूखा पड़ा था। यह सूखा इस कारण उत्पन्न हुआ कि राजा रोमपद एक ब्राह्मण की उपेक्षा कर बैठे थे, जिससे देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और राज्य में वर्षा बंद हो गई।

ऋषि श्रृंगी का आगमन और शांता का विवाह

राजा रोमपद ने इस संकट से निपटने के लिए ऋषि श्रृंगी को अपने राज्य में आमंत्रित किया। ऋषि श्रृंगी अपनी तपस्या और आशीर्वाद के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने यज्ञ के माध्यम से देवताओं को प्रसन्न किया, और अंगदेश में पुनः वर्षा होने लगी, जिससे राज्य की समृद्धि लौट आई। इस घटना से राजा रोमपद ऋषि श्रृंगी से अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी पुत्री शांता का विवाह ऋषि श्रृंगी से कर दिया।

Shanta Devi और ऋषि श्रृंगी की कहानी का महत्व: Shanta Devi और ऋषि श्रृंगी का विवाह न केवल एक पारिवारिक संबंध था, बल्कि यह विवाह धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण था। ऋषि श्रृंगी के आशीर्वाद से अंगदेश का भविष्य सुरक्षित हुआ और शांता ने इस विवाह के माध्यम से एक नई भूमिका निभाई।

पुत्रेष्ठी यज्ञ और अयोध्या की संतानों का जन्म

Shanta Devi के विवाह के बाद, ऋषि श्रृंगी ने एक और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजा दशरथ के कोई संतान नहीं थी, और वह इस चिंता में थे कि उनके राज्य को कोई वारिस नहीं मिलेगा। इस स्थिति से उबरने के लिए ऋषि श्रृंगी ने अयोध्या में पुत्रेष्ठी यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ के आशीर्वाद से ही राजा दशरथ को उनके चार पुत्र – श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की प्राप्ति हुई।

ऋषि श्रृंगी का योगदान: यह स्पष्ट करता है कि यदि Shanta Devi का विवाह ऋषि श्रृंगी से न हुआ होता, तो अयोध्या के इतिहास में इस महत्वपूर्ण यज्ञ की भूमिका नहीं होती। शांता ने अप्रत्यक्ष रूप से रामायण की कहानी में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया।

कुल्लू में शांता देवी का मंदिर

शांता देवी का नाम आज भी जीवित है। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित बंजार के निकट शांता देवी का एक भव्य मंदिर है। यह मंदिर शांता और उनके पति ऋषि श्रृंगी को समर्पित है। यहाँ भक्तजन दूर-दूर से आते हैं और माता शांता तथा ऋषि श्रृंगी की पूजा-अर्चना करते हैं। यह मान्यता है कि यहाँ सच्चे मन से की गई पूजा भगवान श्रीराम की कृपा दिलाती है।

मंदिर की विशेषताएँ: शांता देवी के मंदिर में उनकी पाषाण प्रतिमा उनके पति ऋषि श्रृंगी के साथ स्थापित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस मंदिर में पूजा करने से न केवल जीवन में शांति और समृद्धि मिलती है, बल्कि भक्तों की हर मुराद भी पूरी होती है।

शांता देवी की पौराणिक भूमिका और महत्ता

हालांकि शांता का उल्लेख वाल्मीकि रामायण या तुलसीदास की रामचरितमानस में नहीं मिलता, लेकिन दक्षिण भारत की लोक कथाओं में उनकी कहानी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। Shanta Devi ने अपने जीवन में जो त्याग, बलिदान और धर्म का पालन किया, वह हमें प्रेरित करता है।

शांता का योगदान: शांता देवी की कहानी हमें यह सिखाती है कि इतिहास और पौराणिक कथाओं में कुछ ऐसे पात्र होते हैं, जिनका योगदान भले ही प्रत्यक्ष न दिखे, लेकिन उनका महत्व अत्यधिक होता है। शांता देवी का त्याग और उनका धार्मिक योगदान भारतीय संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं का एक अद्वितीय उदाहरण है।

निष्कर्ष

Shanta Devi की कथा केवल एक भूली हुई कहानी नहीं है, बल्कि यह हमारे धार्मिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनका जीवन त्याग, प्रेम, और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। यह कथा न केवल हमें भारतीय संस्कृति की गहराई में ले जाती है, बल्कि हमें यह भी याद दिलाती है कि प्रत्येक कहानी में छुपे हुए पात्रों का योगदान भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है जितना कि प्रमुख पात्रों का।

शांता देवी की पूजा आज भी हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में होती है, जहाँ उनका मंदिर स्थित है। यह मंदिर हमें याद दिलाता है कि वह केवल राजा दशरथ की पुत्री नहीं थीं, बल्कि उन्होंने अपने जीवन से कई महत्वपूर्ण अध्यायों को जोड़ा, जिनका प्रभाव आज भी भारतीय धार्मिक परंपराओं में देखा जाता है।

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