Navratri हिन्दुओ में बुहत धूम धाम से मनाया जाता है। इस समय सबके मन में एक अलग सी खुसी होती है और सारा मोहाल दैवीय ऊर्जा से भरा रहता है। हम इस लेख में Chaitra Navratri के बारे में बताने जा रहे है वैसे तो साल में चार Navratri आती है इसमें से दो Navratri में मां के नौ रूपों की पूजा अर्चना बहुत धूमधाम से करते हैं और बाकी दोनों Navratri को Gupt Navratri कहा जाता है।
Chaitra Navratri 2022 चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 02 अप्रैल 2022 से हो रही है और 11 अप्रैल 2022 को खत्म हो रही है। (02 -04- 2022 से 11-04-2022) तक चलने वाली है।
Chaitra Navratri 2023 आने वाली है जो की मार्च के महीने में है 22 मार्च 2023 से 30 मार्च 2023 (22 -03- 2023 से 30 -03-2023) तक चलने वाली है।
Chaitra Navratri 2024
Chaitra Navratri 2024 आने वाली है जो की 9 अप्रैल 2024 से 17 अप्रैल, 2024 (09 -04 – 2024 से 17 -04 -2024 ) तक चलने वाली है।
चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ 08 अप्रैल 2024 को रात में 11 बजकर 50 मिनट पर हो रहा है।
साथ ही इसका समापन 09 अप्रैल रात 08 बजकर 30 मिनट पर होगा।
ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, चैत्र माह का आरंभ 09 अप्रैल, मंगलवार के दिन से होगा।
इस दौरान कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहेगा –
घट स्थापना मुहूर्त – सुबह 06 बजकर 02 मिनट से सुबह 10 बजकर 16 मिनट तक
घट स्थापना अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 11 बजकर 57 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक
चैत्र नवरात्र 2024 कैलेंडर
चैत्र नवरात्र का पहला दिन – 09 अप्रैल, 2024 – मां शैलपुत्री पूजा
चैत्र नवरात्र का दूसरा दिन – 10 अप्रैल, 2024 – मां ब्रह्मचारिणी पूजा
चैत्र नवरात्र का तीसरा दिन – 11 अप्रैल, 2024 – मां चंद्रघंटा की पूजा
चैत्र नवरात्र का चौथा दिन – 12 अप्रैल, 2024 – मां कुष्माण्डा पूजा
चैत्र नवरात्र का पांचवा दिन – 13 अप्रैल, 2024 – मां स्कन्दमाता पूजा
चैत्र नवरात्र का छठा दिन – 14 अप्रैल, 2024 – मां कात्यायनी पूजा
चैत्र नवरात्र का सातवां दिन – 15 अप्रैल, 2024 – मां कालरात्रि पूजा
चैत्र नवरात्र का आठवां दिन – 16 अप्रैल, 2024 – मां महागौरी पूजा
चैत्र नवरात्र का नौवां दिन – 17 अप्रैल, 2024 – मां सिद्धिदात्री पूजा और रामनवमी
चैत्र नवरात्र का दसवां दिन – 18 अप्रैल, 2024 – मां दुर्गा विसर्जन
Navratri
चार बार आने वाली Navratri साल के चार महीनो में अति है जिसके बारे में हम निचे बता रहे है।
चैत्र – Chaitra Navratri
आषाढ़ – Ashadha Gupta Navratri
अश्विन (मार्गशीर्ष /क्वांर) –Ashwin Navratri / Shardiya Navratri
माघ – Magh Gupt Navratri
जिसमें से Chaitra Navratri और Ashwin Navratri को प्रत्यक्ष रूप से मनाया जाता है, माघ और आषाढ़ की नवरात्रि गुप्त नवरात्रि मानी जाती है । अश्विन (शारदीय ) नवरात्रि इनमें से सबसे प्रमुख है सबसे बड़ी है।
जिस प्रकार प्रत्यक्ष नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में 10 महाविद्याओं की साधना की जाती है ।
गुप्त नवरात्रि विशेषतः शक्ति साधना, तंत्र मंत्र, तांत्रिक क्रियाओं, महाकाल आदि से जुड़े व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण होती है, इस समय साधक कठोर नियम और व्रत का पालन कर लंबी साधना करते हैं और दुर्लभ और अलौकिक शक्तियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं ।
Gupt Navratri में पूज्य प्रमुख देवियां
गुप्त नवरात्र में अधिकांशतः साधक तंत्र क्रिया या तांत्रिक साधना के लिए इन देवियो की पूजा करते हैं।
- मां काली
- तारा देवी
- त्रिपुर सुंदरी
- मां भुवनेश्वरी
- माता छिन्नमस्ता
- त्रिपुर भैरवी
- माता धूमावती
- मां बगलामुखी
- मां मातंगी
- मां कमला देवी
ऐसा मन जाता है की गुप्त नवरात्र का समय भगवान विष्णु के सोने का समय होता है उस समय दैव शक्तियां कमजोर होती है तथा पृथ्वी पर रूद्र,वरुण एवं यम आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है, इन के प्रकोप से बचने के लिए गुप्त नवरात्र में मां भगवती की आराधना की जाती है ।
वैसे तो हम सब नवरात्रि बहुत धूमधाम से मनाते हैं, मां की भक्ति करते हैं, लेकिन बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि हम नवरात्रि का त्यौहार मनाते क्यों है? आइए हम जाने का प्रयास करते हैं वैसे तो जगत जननी मां आदिशक्ति अपने भक्तों से हमेशा प्रसन्न रहती है पर नवरात्रि के 9 दिनों की खास विधि विधान से की गई पूजा से मां और भी अधिक प्रसन्न होती है और अपने भक्तों को आशीर्वाद देती है।
Navratri क्यों मनाते हैं ?
महिषासुर मर्दन / Mahisasur Mardini की कथा आप सब ने सुनी होगी महिषासुर / Mahisasur नाम का एक राक्षस जो रंभ नामक राक्षस का पुत्र था, उसने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया । ब्रह्मा जी ने उसे वरदान मांगने को कहा तब महिषासुर / Mahisasur ने अमरत्व का वर मांगा और कहा कि ब्रह्म देव मुझे अमरता का वरदान दीजिए।
ब्रह्मा जी ने इसे प्रकृति के नियम के विरुद्ध बताया और कहा कि इस संसार में जिसने भी जन्म लिया है चाहे वह मनुष्य हो या पशु, पक्षी या कोई अन्य जीव जिसने भी जन्म पाया है उसे मरना ही होगा, उसकी मृत्यु निश्चित ही होगी, अतः व अमरता के अलावा कोई अन्य वरदान मांग ले। तब महिषासुर / Mahisasur ने चतुराई से यह वर मांगा कि उसकी मृत्यु किसी भी पुरुष से के द्वारा ना हो चाहे वह देव, दानव हो, मनुष्य हो या कोई पशु ही क्यों ना हो किसी भी पुरुष के द्वारा उसकी मृत्यु संभव ना हो। केवल एक स्त्री ही उसका दमन कर सके। यह वरदान ब्रह्मा जी ने उसे दिया ।
यह वरदान महिषासुर / Mahisasur ने यह सोचकर मांगा था कि एक स्त्री अबला होती है वह उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी।
वरदान पाने के बाद महिषासुर / Mahisasur ने सृष्टि में विनाश करना प्रारंभ कर दिया । ऋषि मुनियों को प्रताड़ित करना, ऋषि पत्नियों के साथ दुर्व्यवहार करना उनको प्रताड़ना देना यह सब करने लगा। स्वर्ग के राजा इंद्र को भी परास्त कर दिया और स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।
मनुष्य और देवता सब त्राहि-त्राहि करने लगे, तब सब देवता मिलकर ब्रह्मा जी के पास गए परंतु ब्रह्मा जी अपने दिए हुए वरदान के कारण देवताओं की सहायता करने में असमर्थ थे तब सब देवता ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु के साथ मिलकर भगवान शिव और माता पार्वती के पास गए और उनसे प्रार्थना की कि वे इस समस्या का कोई उचित समाधान निकाले तब मां पार्वती ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह महिषासुर का संघार कर संपूर्ण सृष्टि को उसके उसके पाप से मुक्त करेंगी तब मां पार्वती ने दुर्गा का रूप लिया और सभी देवों ने उन्हें अपने शस्त्र भेंट किये और उन्हें बल दिया।
मां दुर्गा और महिषासुर के बीच का युद्ध 9 दिनों तक चला इन नौ दिनों तक देवताओं ने मां दुर्गा की पूजा आराधना की फिर दसवें महिषासुर / Mahisasur का वध मां दुर्गा ने किया । यही 9 दिन नवरात्रि के रूप में और 10 दिन विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है।
Navratri 9 days Devi Names / Navratri devi names
नवरात्रि के 9 दिनों तक मां के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है ।
प्रथम दिन माता शैलपुत्री
द्वितीय दिन मां ब्रह्मचारिणी
तृतीय दिन मां चंद्रघंटा
चतुर्थ दिन कुष्मांडा
पंचम दिन मां स्कंदमाता
छठे दिन मां कात्यायनी
सातवें दिन मां कालरात्रि
अष्टमी के दिन मां महागौरी
नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री
Navratri Mantra
मां शैलपुत्री
मां दुर्गा का प्रथम रूप है मां शैलपुत्री। शैल का अर्थ है -पर्वत। मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री है उन्हें ही माता पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। मां शैलपुत्री का वाहन बैल है ।
इनका पूजन मंत्र है – 1st day of navratri mantra
“वंदे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढ़ां शूलआधरआं, शैलपुत्री यशस्विनी।।”
मां ब्रह्मचारिणी
मां दुर्गा का द्वितीय रूप है मा ब्रह्मचारिणी। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तप करने वाली। मां ब्रह्मचारिणी के एक हाथ में जप की माला है और दूसरे हाथ में कमंडल विराजमान है। भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए मां ने कई वर्षों तक तपस्या की थी, यही उनका ब्रह्मचारिणी स्वरूप है। तप, साधना, वैराग्य, त्याग, सदाचार और संयम की वृद्धि के लिए मां ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है।
पूजन मंत्र – 2nd day of navratri mantra
“दधाना करपाद्माभ्याम, अक्षमालाकमण्डलु ।
देवी प्रसीदतुमयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।”
मां चंद्रघंटा
नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। भगवान शिव से विवाह के पश्चात मां पार्वती ने अपने माथे पर अर्धचंद्राकार घंटा सजाया इस कारण ही उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा।
पूजन मंत्र – 3rd day of navratri mantra
“पिंडजप्रवरारूढां, चंडकोपास्त्रकेर्युता ।
प्रसादं तनुते महतो, चंद्रघंटेति विश्रुता ।।”
मां कुष्मांडा
नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की आराधना करते हैं। कुष्मांडा दो शब्दों के योग से बना है ‘कुसुम’ तथा ‘आंड’ । कुसुम का अर्थ है- फूल और आंड का अर्थ है-ब्रह्मांड । इसका अर्थ है देवी ने अपने फूलों के समान मुस्कान से पूरे ब्रह्मांड को अपने गर्भ में उत्पन्न किया है। देवी कुष्मांडा की आठ भुजाएं है । हाथों में अमृत का कलश भी है मां कुष्मांडा यश, आयु और आरोग्य की देवी है ।
पूजन मंत्र – 4th day of navratri mantra
“सूरासंपूर्णकलशं, रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां, कूष्माण्डा शुभदास्तु में।।”
मां स्कंदमाता
नवरात्र के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा करते हैं। भगवान शिव और माता पार्वती के 6 मुख वाले पुत्र स्कंध की माता होने के कारण मां का नाम स्कंदमाता पड़ा। कमल आसन पर विराजमान मां की चार भुजाएं हैं। उनके एक हाथ में कमल का फूल है और दूसरे हाथ में त्रिशूल। मोक्ष प्राप्ति मां स्कंदमाता की कृपा से संभव है ।
पूजन मंत्र – 5th day of navratri mantra
“सिंहासनगता नित्यम् ,पद्माश्रितकरद्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी, स्कंदमाता यशस्विनी।।”
मां कात्यायनी
नवरात्र के छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। ऋषि कात्यायन की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इन्हें कात्यायनी कहा गया। मां कात्यायनी का वाहन सिंह है, मां की आराधना से चारों पुरुषार्थ अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त होते हैं ।
पूजन मंत्र- 6th day of navratri mantra
“चंद्रहासोज्ज्वल करा , शार्दुल वरवाहना।
कात्यायनी शुभंदद्यात् , देवी दानव घातिनी।।”
मां कालरात्रि
मां कालरात्रि नवरात्रि के सातवें दिन पूजी जाती है। असुरों का संहार करने वाली मां कालरात्रि के तीन नेत्र और आठ भुजाएं हैं। मां कालरात्रि का स्वरूप बहुत ही विकराल और दिव्य है।
पूजन मंत्र- 7th day of navratri mantra
“एकवेणी जपाकर्ण , पूरानग्ना खरास्थिता ।
लंबोष्ठी कर्णिका कर्णी , तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपादोल्लसल्लोह, लताकंटकभूषणा ।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रि भयंकरी।।”
महागौरी
नवरात्र के आठवें दिन मां महागौरी का पूजन किया जाता है। मां महागौरी का श्रृंगार उनकी वस्त्र आभूषण सब सफेद रंग के हैं मां स्वयं भी श्वेत वर्ण की है मां का वाहन बैल है।
पूजन मंत्र- 8th day of navratri mantra
“श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बर धरा शुचि:।
महागौरी शुभंदद्यात् , महादेव प्रमोददाद ।।”
सिद्धिदात्री
सिद्धियां प्रदान करने वाली है मां सिद्धिदात्री। नवरात्रि के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं। शास्त्रों में वर्णित समस्त आठों सिद्धियां (अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व, और वशित्व) मां सिद्धिदात्री की भाव पूर्वक पूजा से प्राप्त की जा सकती है।
पूजन मंत्र- 9th day of navratri mantra
“सिद्धंगंधर्वयक्षायैः , असुरैरमरेरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् ,सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।”
इस प्रकार नवरात्रि में 9 दिन तक मां के इन विभिन्न रूपों की भाव पूर्वक सच्चे मन से पूजा करने पर मां अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं की पूर्ति करती है, हमारी भी यही कामना है कि मां हम सब पर अपनी कृपा बनाए रखें ।
जय माता दी