Ram Navami राम भगवान के जन्म का कारण

JAI SHRI RAM हिन्दू धर्म एक महान धर्म है जिसकी गाथा सदियों से चली आ रही है। सरे हिन्दुओ के दिलो में श्री राम बास्ते है इसलिए Ram Navami बुहत ही उत्साह से मनाया जाता है। इस लेख में हम आपको बताएँगे के Ram Navmi kyu manaya jata hai. इसके पीछे की कहानी जो शायद ही आप जानते होंगे।

Ram Navmi / Ram Navami

Ram Navami एक हिंदू त्योहार है जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार राम के जन्मदिन को त्योहार के रूप में मनाता है। यह त्योहार अयोध्या में जब राजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र भगवन राम के रूप में भगवन विष्णु ने अवतार लिया उस दिन का जश्न मनाता है। यह त्योहार वसंत ऋतु में चैत्र नवरात्रि का एक हिस्सा है, और हिंदू कैलेंडर में पहले महीने चैत्र के शुक्ल पक्ष के नौवें दिन पड़ता है। यह आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मार्च या अप्रैल के महीनों में होता है। RamNavami भारत में सरकारी कर्मचारियों के लिए एक वैकल्पिक अवकाश भी है।

Ram Navami 2022 – 10 April 2022, Sunday

Ram Navami 2023 – 30 March 2023, Thursday

Shri Ram Birth Date and Time / श्री राम जन्म तिथि एवं समय

ऋग्वेद से रोबोटिक्स तक सांस्कृतिक निरंतरता प्रदर्शनी के अनुसार, Ram Bhagwan का जन्म 10 जनवरी को 12.05 बजे, 5114 ईसा पूर्व हुआ था और महाभारत युद्ध 13 अक्टूबर, 3139 ईसा पूर्व शुरू हुआ था।

खगोलीय साक्ष्य के साथ, यह कहा जाता है कि हनुमान 12 सितंबर, 5076 ईसा पूर्व में लंका में अशोक वाटिका में सीता से मिले थे।

”इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेद (आई-सर्व) के दिल्ली चैप्टर के निदेशक सरोज बाला ने कहा। “ऋग्वेद 7,000 साल पहले का है और रामायण का संदर्भ 7,000 साल पुराना है, जबकि महाभारत 5,000 साल पहले का है।”

Shri Ram Date of Death

104 साल की उम्र में

 

why ram navami is celebrated / राम नवमी क्यों मनाई जाती है

 

Ram Navami का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है जो अप्रैल-मई में आता है। RamNavami का पर्व हम हिंदुओं के लिए बहुत ही खास है। हमारे आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जन्म का उत्सव है Ram Navami। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में नवमी तिथि को भगवान विष्णु ने प्रभु श्री राम के रूप में अवतार लिया था। भगवान विष्णु ने मानव रूप में जन्म लेकर मानव योनि को ही धन्य किया था।

रामचरितमानस की एक चौपाई में इस तिथि को बहुत सुंदर रूप में वर्णन किया है गोस्वामी तुलसीदास जी ने।

नवमी तिथि मधुमास पुनीता ।
शुक्ल पक्ष अभिजीत हरि प्रीता ।।
मध्य दिवस अति शीत न घामा ।
पावन काल लोक विश्रामा ।।

मतलब

मधुमास यानी वसंत ऋतु मे चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अभिजीत मुहूर्त जो भगवान का सबसे प्रिय मुहूर्त है मध्य दिवस में जब ना ज्यादा ठंडी और ना ही ज्यादा गर्मी थी , जब संपूर्ण सृष्टि विश्राम कर रही थी तब भगवान पृथ्वी पर अवतरित हुए ।

अब प्रश्न उठता है कि भगवान विष्णु ने मानव रूप में ही जन्म क्यों लिया और महाराज दशरथ को ही यह सौभाग्य क्यों प्राप्त हुआ ?

गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है कि भगवान के पृथ्वी पर जन्म देने का केवल एक ही कारण नहीं है

राम जन्म के हेतु अनेका ।
परम विचित्र एक थे एका ।।
जब जब होई धरम की हानि ।
बाढ़हि असुर अधम अभिमानी ।।
तब तब प्रभु धरी विविध सरीरा ।
हरही कृपा निधि सज्जन पीरा ।।

मतलब

भगवान के जन्म के कई कारण है, जब जब पृथ्वी पर धर्म का ह्रास होता है और अधर्म का उत्थान होता है, असुर, अभिमानी का प्रकोप बढ़ता है तब तब प्रभु भिन्न-भिन्न रूप में अवतार लेते हैं, और असुर प्रवृत्ति का विनाश कर संसार में धर्म की स्थापना करते हैं। लोगों के कष्टों को हर कर दैवी शक्तियों को स्थापित करते हैं । यही प्रभु के जन्म का प्रमुख उद्देश्य होता है।

 

ram navami
ram navami

 

 

राम भगवान के जन्म का कारण – कुछ कारण जो मुख्य है

भगवान शिव ने माता पार्वती को भगवान के जन्म के बारे में बताते हुए कहा कि प्रभु के पृथ्वी पर अवतरित होने के कुछ विशेष कारण है ।

पहला कारण

भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय को सनकादिक ऋषियों का श्राप।

पुराणों में कथा आती है कि एक बार सनकादिक ऋषि (सनक, सनंदन, सनातन, सनत कुमार) भगवान श्री हरि के दर्शन के लिए बैकुंठ धाम गए परंतु जय और विजय ने उन्हें द्वार पर रोक कर कहा कि प्रभु अभी विश्राम कर रहे हैं और अभी उनसे भेंट नहीं हो सकती।

सनकादिक ऋषियों ने जय और विजय को समझाया कि वे भगवान के परम भक्त हैं उन्हें प्रभु के दर्शन के लिए जाने दे परंतु जय और विजय ने उन्हें प्रवेश नहीं दिया, बार-बार समझाने पर भी जय और विजय जब नहीं माने तो सनकादिक ऋषियों ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया और कहा कि तुम्हें प्रभु के समीप होने के पश्चात भी अहंकार हो गया है, और ऐसे अहंकारी को वैकुंठ में नहीं रहना चाहिए।

इसलिए तुम दोनों को मृत्यु लोक में जाना होगा। यह श्राप सुनकर जय विजय भयभीत हो गए और क्षमा मांगने लगे, तभी भगवान विष्णु माता लक्ष्मी सहित वहां पधारे और उन्होंने सनकादिक ऋषियों से कहा कि मेरे सेवकों के द्वारा आपकी जो अवज्ञा हुई है उसके लिए मैं आप सब से क्षमा याचना करता हूं। भगवान की यह बातें सुनकर सनकादिक ऋषियों का क्रोध शांत हुआ और जय विजय को शाप मुक्त करने को तैयार हो गए।

परंतु भगवान विष्णु ने कहा कि यदि उन्होंने जय और विजय को श्राप मुक्त कर दिया तो ब्राह्मणों का कथन असत्य सिद्ध हो जाएगा तब सनकादिक ऋषियों ने कहा की जय और विजय को 3 जन्मों तक मृत्युलोक में राक्षस योनि में जन्म मिलेगा और Ram Bhagwan के अवतारों के हाथों उनका उद्धार होगा।‌ फिर वे वापस बैकुंठ में स्थान प्राप्त कर पाएंगे।

यही जय और विजय अपने पहले जन्म में हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष के रूप में जन्मे तब भगवान हरि ने वराह रूप में हिरण्याक्ष और नरसिंह रूप में हिरण्यकशिपु का वध किया।

इनका दूसरा जन्म रावण और कुंभकरण के रूप में हुआ और Ram Bhagwan के हाथों उनका अंत हुआ ।

जय और विजय अपने तीसरे जन्म में शिशुपाल और दंतवक्र हुए और श्री कृष्ण के द्वारा इनका संहार हुआ।

Ram Bhagwan के जन्म का दूसरा कारण

वृंदा का भगवान विष्णु को श्राप

जालंधर नामक राक्षस की पत्नी वृंदा एक सती नारी थी । उनके सतीत्व को भंग किए बिना जालंधर का अंत करना असंभव था, तब भगवान विष्णु ने वृंदा के साथ छल किया और उसका सतीत्व भंग कर जालंधर का वध किया।

तब क्रोधित होकर वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि, उन्हें भी पृथ्वी पर मानव रूप में जन्म लेना होगा और पत्नी के योग का दुख सहना होगा वृंदा के श्राप के कारण ही Ram Bhagwan और माता सीता अलग हुए ।(वृंदा और जालंधर की विस्तृत कथा आपको हमारी दूसरी पोस्ट पर मिल जाएगी)

Ram Bhagwan के अवतार का तीसरा कारण

देव ऋषि नारद का श्राप

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देव ऋषि नारद को अहंकार हो गया कि उन्होंने कामदेव पर विजय प्राप्त कर ली जिस कामदेव से कोई जीत नहीं पाया। यह बात उन्होंने पहले भगवान शंकर को बताई, भगवान शंकर ने कहा कि यह बात वे श्री विष्णु के सामने इतने अभिमान से ना बताएं।

परंतु नारद नहीं माने और भगवान विष्णु से भी देवर्षि नारद ने काम पर विजय की बात बड़े अहंकार से बताई तब भगवान विष्णु समझ गए कि नारद मुनि को अहंकार हो गया है। फिर भगवान ने उनका अहंकार दूर करने की योजना बनाई ।

जैसे ही नारद ऋषि भगवान विष्णु को प्रणाम कर आगे बढ़े उन्हें एक भव्य नगर दिखाई दिया जहां के राजा की पुत्री थी विश्वमोहिनी जो परम सुंदरी थी । यह नगर और राजकुमारी सब भगवान विष्णु की ही माया थी, जिसे देखकर नारद मोहित हो गए।

उस नगर में राजकुमारी का स्वयंवर हो रहा था नारद मुनि के मन में राजकुमारी विश्वमोहिनी को पाने की इच्छा हुई और वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे प्रार्थना की कि उसे अपने समान सुंदर रूप प्रदान करें जिससे राजकुमारी विश्वमोहिनी उनका ही चुनाव करें भगवान ने उनकी इच्छा पूरी की।

क्योंकि भगवान का एक रूप वानर का भी है नारद मुनि को वानर का रूप दिया। परंतु देव ऋषि नारद को यह बात ज्ञात नहीं थी वे अपने इसी रूप के साथ स्वयंवर में पहुंचे उन्हें पूर्ण विश्वास था कि विश्वमोहिनी उन्हें ही वरमाला पहनाएगी परंतु विश्वमोहिनी ने उन्हें छोड़कर भगवान विष्णु को वरमाला पहनाई । (इसीलिए भगवान विष्णु को मायावती कहते हैं ) सभा में नारद जी के रूप की हंसी भी उड़ाई गई।

तब नारद जी ने जल में अपना मुख देखा और अपना वानर रूप देखकर क्रोधित हो गए और क्रोध वश भगवान को श्राप दे दिया कि जिस प्रकार में एक स्त्री के लिए व्याकुल हुआ उसी प्रकार पृथ्वी पर आपको मनुष्य रूप में जन्म लेना पड़ेगा और एक स्त्री के लिए व्याकुल होकर भटकना होगा तब आपको एक वानर की ही सहायता लेनी पड़ेगी।

जब भगवान की माया का प्रभाव खत्म हुआ तब नारद ऋषि को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान से क्षमा मांगी। देव ऋषि नारद के दोनों श्राप फलीभूत हुए। भगवान हरि Ram Bhagwan अवतार में माता सीता की खोज में पृथ्वी पर भटके और तब उन्हें वानरों की सहायता भी लेनी पड़ी।

Ram Bhagwan के जन्म का चौथा कारण

मनु और शतरूपा को दिया गया वरदान

महाराज मनु और रानी सतरूपा ने तपस्या कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया और उनसे यह वर मांगा कि वे स्वयं उनके पुत्र के रूप में जन्म ले । भगवान ने उन्हें वचन दिया कि वे अवश्य ही उनके पुत्र के रूप में प्रकट होंगे । महाराज मनु और महारानी सतरूपा अपने-अपने अगले जन्मों में अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या हुए और तब भगवान ने अपना वचन पूरा किया और उनके घर Ram Bhagwan के रूप में अवतार लेकर आए।

Ram Bhagwan के जन्म का पांचवा कारण

प्रताप भानु और अरिमर्दन को मिला ब्राह्मणों का श्राप

कैकय देश में एक राजा थे सत्यकेतु, उनके दो पुत्र हुए प्रतापभानु और अरिमर्दन । प्रतापभानु की उचित आयु होने पर सत्यकेतु ने उन्हें राज्यभार सँभालने को दे कर वन में चले गए।

प्रताप भानु बहुत ही तेजस्वी और सज्जन राजा थे। वेदों में वर्णित विधि अनुसार ही राज कार्य का संचालन करते थे उनकी प्रजा में कोई दुखी नहीं था। प्रताप भानु ने अपने बल से सातों दीपों पर विजय प्राप्त कर ली थी और सारे राजाओं को दंड देकर मुक्त कर दिया था।

एक बार जब राजा प्रतापभानु शिकार पर गए तब उन्हें वन में एक विशाल नीले रंग का सूअर दिखाई दिया, उसका पीछा करते-करते प्रतापभानु बहुत दूर निकल गए फिर वहां सुअर एक गहरी गुफा में घुस गया, राजा को वहां जाना कठिन लगा और वह वापस लौटने लगे।

परंतु राजा रास्ता भटक गए थे तब उन्हें एक आश्रम दिखाई दिया जहां एक राजा जिसे प्रताप भानु ने परास्त किया था एक मुनि का वेश बनाकर बैठा था उसने राजा प्रतापभानु को पहचान लिया, उसने राजा से कहा कि वे आज रात यही विश्राम करो राजा प्रताप भानु उस कपटी मुनि को पहचान नहीं पाए थे।

रात्रि में राजा ने जब मुनि से उनका विस्तृत परिचय पूछा तब कपटी मुनि ने झूठ बोलते हुए कहा-कि जब से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है तब से ही मेरी भी उत्पत्ति हुई है और तब से मैंने दूसरा देह धारण नहीं किया है इसलिए मेरा नाम एकतनु है। मुझसे कुछ भी छुपा नहीं है मैं सब जानता हूं।

यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उस कपटी मुनि को अपने राज्य में आने का आग्रह किया। कपटी मुनि जो एक राजा ही था प्रताप भानु के पुण्य नष्ट करना चाहता था जिससे उसका सर्वनाश हो जाए।

उसने राजा से कहा कि वह उसके घर आएंगे और राजा से कहा कि वह एक लाख ब्राह्मणों का भोज कराए परंतु यह भोज कपटी मुनि स्वयं बनाएंगे जिसके बारे में किसी को पता ना चले। राजा कपटी मुनि की बातों में आ गया और उसने ब्राह्मणों को भोज का निमंत्रण दिया।

उस कपटी मुनि ने भोजन में ब्राह्मणों का मांस मिला दिया। जब राजा ने ब्राह्मणों को भोजन परोसा तभी एक आकाशवाणी हुई कि राजा ने छल किया है ब्राह्मणों को मांस मिला भोजन परोसा है यह सुनकर सारे ब्राह्मण क्रोधित होकर उठ गए और उन्होंने राजा प्रतापभानु को श्राप दिया की उनका कुल सहित विनाश हो जाएगा उसके कुल में कोई पानी देने वाला नहीं बचेगा।

यह श्राप सुनकर कपटी मुनि जो एक राजा ही था उसने सारे हारे हुए राजाओं को सूचना दे दी और सब राजाओं ने प्रतापभानु पर आक्रमण कर दिया। प्रतापभानु भाइयों और परिवार सहित परास्त हो गया। यही प्रतापभानु अपने अगले जन्म में रावण और अरिमर्दन कुंभकर्ण हुआ और इस जन्म में भी उनका कुटुम्ब सहित विनाश हुआ।

यह थे Ram Bhagwan के पृथ्वी पर अवतरित होने के कुछ प्रमुख कारण भगवान पृथ्वी पर अवतार लेकर आते हैं और विभिन्न लीलाएं करते हैं और भक्त उनकी लीलाओं का गान कर भवसागर से पार होते हैं। तो हमने जाना के राम भगवन के जन्म लेने के क्या क्या कारन थे। क्यों भगवन विष्णु में मानव रूप में श्री राम के अवतार में पृथ्वी में जन्म लिए। इसलिए Ram Navami हर साल इतनी धून धाम से मनाई जाती है आपको इस जानकारी को पद कर कैसा लगा अपने विचार जरूर लिखे।

JAI SHRI RAM

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