फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन और इसके अगले दिन होली मनाई जाती है। Holi, जिसे रंगों के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है, भारत और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले सबसे जीवंत और खुशी वाले त्योहारों में से एक है। यह बुराई पर अच्छाई की विजय, वसंत के आगमन और सर्दियों के अंत का प्रतीक है। आइए होली के पीछे की कहानी में गहराई से उतरें और भारतीय संस्कृति के महत्व का पता लगाएं।
Holi Festival Of Colors
संस्कृत सौहार्द का पर्व है होली। यह त्यौहार आज भारत देश में ही नहीं पूरे विश्व में मनाया जाता है। होली का त्योहार प्रेम और मित्रता का प्रतीक है जिसके माध्यम से हर व्यक्ति अपनी बुराई छोड़कर शत्रुता भूल कर अपनों से और समाज के हर व्यक्ति से मिलकर खुशियां मनाता है।

होली, जिसे रंगों के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है, भारत और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले सबसे जीवंत और खुशी वाले त्योहारों में से एक है। यह बुराई पर अच्छाई की विजय, वसंत के आगमन और सर्दियों के अंत का प्रतीक है। आइए होली के पीछे की कहानी में गहराई से उतरें और भारतीय संस्कृति और उससे परे इसके महत्व का पता लगाएं।
बुराई पर अच्छाई की जीत और प्रेम का त्यौहार है होली। होली के दिन सारी बुराई और बैर भाव भूल कर लोग एक दूसरे को प्रेम से गले लगाते हैं। बच्चे हो या बूढ़े सबको इस त्यौहार का इंतजार होता पुरे वर्ष रहता है।
होली की प्रचलित कथाएं
हिंदू धर्म में हर त्यौहार को मनाने के पीछे कोई ना कोई कारण और उसकी कथा जुड़ी होती है। होली को भी लोग अलग-अलग कारणों से, अलग-अलग तरीके से बनाते हैं। कहीं यह राधा कृष्ण के प्रेम के उत्सव के रुप में तो कहीं शिव पार्वती के मिलन के रुप में मनाया जाता है।
राधा कृष्ण के प्रेम का उत्सव है या त्योहार। पौराणिक समय में श्री कृष्ण और राधा जी के रास और उनकी बरसाने की होली के साथ ही होली के उत्सव की शुरुआत हुई।आज भी बरसाने और नंदगांव की लठमार होली विश्व विख्यात है। वृंदावन और मथुरा की होली का उत्सव देखने देश-विदेश से लोग आते हैं वृंदावन में फूलों की होली खेली जाती है।
एक अन्य कथा के अनुसार यह त्यौहार कामदेव के पुनर्जन्म और शिव जी का माता पार्वती से विवाह प्रस्ताव स्वीकार करने का उत्सव है। शिव पुराण के अनुसार माता सती का पुनर्जन्म हिमालय राज की पुत्री पार्वती के रूप में हुआ था। माता पार्वती बचपन से शिव जी से विवाह करने हेतु तपस्या कर रही थी। माता पार्वती ने कई वर्षों तक तप किया परंतु महादेव सती वियोग में दुखी होकर साधना में लीन थे, उन्हें इस बात का आभास नहीं था कि माता सती, माता पार्वती के रूप में जन्म ले चुकी है।
उसी समय ताड़कासुर नामक एक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। उसने स्वर्ग पर भी अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। देवता भी उसे परास्त नहीं कर पा रहे थे, इसका कारण था उसे मिला वरदान, ताड़कासुर को यह वरदान प्राप्त था कि उसे केवल शिव जी का पुत्र ही मार सकता है। परंतु शिव जी के साधना मे लीन रहने के कारण शिव पार्वती का मिलन नहीं हो पा रहा था।
तब देवताओं ने कामदेव से कहा कि वे महादेव की साधना भंग करें। कामदेव ने शिवजी पर अपने पुष्प बाण से प्रहार किया। उस बाण के प्रहार के प्रभाव से शिव जी के मन में प्रेम और काम का भाव संचारित हुआ जिससे उनकी समाधि भंग हो गई। इससे क्रोधित होकर महादेव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया।
शिवजी की समाधि भंग होने के बाद देवताओं ने मिलकर भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे माता पार्वती से विवाह कर ले भगवान भोलेनाथ राजी हो गए तथा कामदेव की पत्नी रति की प्रार्थना स्वीकार कर कामदेव को भी पुनर्जीवित किया। भगवान भोलेनाथ का विवाह के लिए मान जाना और कामदेव को जीवन दान मिलना देवताओं के लिए उत्सव से कम नहीं था। सभी देवताओं ने इस अवसर पर पुष्प और गुलाल की वर्षा की और इसे त्यौहार के रूप में मनाया।
होली के दिन से ही नए विक्रम संवत का प्रारंभ होता है, चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन ही धरती पर प्रथम मानव “मनु” का जन्म हुआ था तथा कामदेव को जीवनदान भी इसी दिन मिला था। कहते हैं भगवान विष्णु ने इसी दिन नरसिंह अवतार लेकर हिरण कश्यप का वध किया और प्रहलाद को दर्शन दिया।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः, होली रंगों के त्यौहार से कहीं अधिक है; यह जीवन, प्रेम और सांस्कृतिक समृद्धि का उत्सव है। इसकी प्राचीन उत्पत्ति, पौराणिक महत्व और आधुनिक समय का अनुपालन भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव को दर्शाता है।